गरीब आपकी पब्लिसिटि क‍ा माध्यम नही है ओर वो आपकि प्रापर्टी भी नही है साहब 

जेसा कि उनके चेहरे उपयोग कर रहे हो, बंद होना चाहिये यह पब्लिसिटी स्टंट |




जो भी करना है रब को राजी करने के लिये करो,  खुदा रा किसको दिखा रहे हो फोटो खींच खीच कर गरीब कि मदद कर रहे या गरीब कि मजबुरी का मज़ाक उड़ा रहे हो, गरीब सोचता रहा कि मजबूरी तो मेरी है क्योकि मेरे बच्चे भुखे है,में भुखा हुं, इनकी क्या मजबुरी है फोटो वीडियो बनाने कि!
खुद कि फोटो मदद करते हुये मजबुर जरुरत मंद के साथ खिंचा रहे हो, अल्लाह रब्बुल ईज़्ज़त को इखलास दिखता फोटो नही, नीयत दिखती है, 


कोई ज़रुरत मंद जो आज एक वक़्त के खाने के बदले आप के साथ पेकेट लेते हुये फोटो मे आगया ओर वो गरीब भी हो सकता है या वो वक़्त का सताया हुआ सुल्तान य‍ा अमीर भी हो सकता हे,आपने उस के फोटो को तमाम जगह पहुंचा दिया लेकिन वो ज़रुरतमंद हमेशा हमेशा के लिये आपके एहसान तले दब गया इसके बदले उसकी फोटो जहां जहां तक पहुंचेगी वहां वहां तक उस कि मजबुरी का ढिंढोरा पिट गया होगा,


जो लोग किसी कि मदद उसके हालात के बनिस्बत तरस खा कर करते है ओर खालिस अल्लाह को राज़ी करने के लिये करते है करना भी चाहिये जो कानो कान खबर भी नही होने देते ओर खामोशी से मदद करते रहते है तारीफ के काबिल है ! 


बेशक में अपने समाज के उन लोगो से मुखातिब हुं,जो बहुत सक्षम है मदद करने मे, उनको पब्लिसीटी कि ज़रुरत नही होना चाहिये !


किसी शासकीय या गेर सरकारी एनजीओ से मददगार समुह से मुखातिब नही हुं क्योकि जिनको नम्बर्स मिलेंगे या ईन्कम टेक्स मे छुट मिलेगी या उनकी जिम्मेदारी पुछी जायेगी एसी भी बहुत सी संस्थायें हे जो पब्लिसिटी के बिना बेहद जिम्मेदारी से अपना काम कर रही है। बस ईतना ही कहुंगा मैं उन गरिबो बेबसो के चेहरे देख कर राशन थमा दिया किसी ने फोटो के साथ साथ.जो मरने लगा था भूक से, वो गैरत से मर गया.


एस असरार अली 
स्वतंत्र पत्रकार 
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