मैनेजमेंट फंडा
वो सिर्फ दसवीं पास था, जो कम से कम उन दिनों में सबसे उच्च शिक्षा मानी जाती थी। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि उसे भारतीय रेलवेज में बतौर पार्सल क्लर्क नौकरी मिल गई। उन दिनों जब ट्रेनें सीमित थीं और प्लेटफॉर्म पर कभी भीड़ नहीं होती थी, तब स्टेशन पर आने वाले हर मुसाफिर से पार्सल क्लर्क की बातचीत हो जाना साधारण बात थी। शहर के हर नामचीन शख्स के नाम से वह वाकिफ था, क्योंकि उन दिनों हर किसी को ट्रेन से ही सफर करना होता था और हवाई यात्रा सिर्फ अमीरों के बस की बात थी। और रायपुर जैसे छोटे शहर में तो हवाई अड्डा था भी नहीं।
इन हालात में पार्सल क्लर्क प्रभाकर शर्मा की दोस्ती हो गई यशवंत गोविंद जोगलेकर से, जो दुर्गा कॉलेज रायपुर में कॉमर्स पढ़ाते थे और अपनी कठोरता के लिए जाने जाते थे। प्रोफेसर जोगलेकर से लगातार हो रही मुलाकातों ने शर्मा के दिल में ख्वाब जगाया कि उनकी दीक्षा में कुछ और शिक्षा ग्रहण की जाए। हालांकि जोगलेकर ने इसे नजरअंदाज किया, यह मानकर कि एक बार आदमी सरकारी नौकरी में जम गया तो उच्च शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं होगा। लेकिन काफी मान-मनौव्वल के बाद जोगलेकर मान गए और शर्मा ने उनकी देखरेख में बीकॉम, एमकॉम किया और फिर पीएचडी भी। अब वह डॉ. प्रभाकर शर्मा बन गए थे, जो रेलवे की नौकरी छोड़, शिक्षण के पेशे में आ गए और काकीनाड़ा यूनिवर्सिटी आंध्रप्रदेश में कॉमर्स के प्रोफेसर बन गए ।
प्रोफेसर बनने के बाद उन्होंने अपने गुरु जोगलेकर को अपने बेटे की शादी में बुलाया। स्वास्थ्य कारणों से जोगलेकर सफर नहीं करते, झिझकते हुए राजी हुए। शादी की जगह, राजामुंदरी के पास एक रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो उन्हें एक बोर्ड दिखाई दिया- ‘जोगलेकर शर्मा वेड्स...’, तब उन्हें एहसास हुआ कि शर्मा ने अपने बेटे का नाम उनके नाम पर रखा था। यह शर्मा की अपने गुरु को एक महान श्रद्धांजलि थी। इतना ही नहीं शर्मा ने सुनिश्चित किया कि उनका छोटा भाई उनके गुरु की हर छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए 24 घंटे सातों दिन उनके साथ रहे। यह छोटा भाई गुरु के कमरे के बाहर ही डटा रहा। यह छोटा भाई विशाखापटनम के एक बड़े अस्पताल का डीन और सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट था।
एक और किस्सा है शरीर से मजूबत, दिखने में खूबसूरत, लेकिन कुख्यात अश्विनी शुक्ला उर्फ बुट्टू का, जो ब्राह्मणपाड़ा का रहने वाला है। संयोग है कि रायपुर की यह जगह भी एक समय में कुख्यात रही है। पढ़ने-लिखने में मन लगा तो बुट्टू ने भी उच्च शिक्षा के लिए प्रो. जोगलेकर से संपर्क किया। जोगलेकर ने उसे भगा दिया- ऐसे गुंडे कभी पढ़ नहीं सकते। बुट्टू दिन-प्रतिदिन, बार-बार आता रहा, हर बार दुत्कारा जाता रहा। लेकिन कई दिनों तक बुट्टू की जिद देखकर, जोगलेकर का दिल पिघल गया और उन्होंने खुद को एक बार फिर कठिन परीक्षा के दौर से गुजारने के लिए तैयार किया। बुट्टू की पढ़ाई शुरू हुई, लेकिन उनके घर के दरवाजे के बाहर, जमीन पर बैठकर। वह अडिग छात्र वहीं बैठा और जोगलेकर जो कुछ अपने दूसरे छात्रों को सिखा रहे थे, उसे सुनकर सीखता रहा। बुट्टू ने बीकॉम, एमकॉम किया, फिर पीएचडी भी और आखिरकार रवि शंकर यूनिवर्सिटी का रजिस्ट्रार बन गया।
यह रोचक किस्से उनके पुत्र विवेक यशवंत जोगलेकर ने मुझसे साझा किए। तब वह बिलासपुर-रायपुर रीजनल रूरल बोर्ड बैंक के साथ काम कर रहे थे। विवेक ने बैंकर्स की पदोन्नति के लिए होने वाला सीएआईआईबी परीक्षा दी और उन्हें पूरा यकीन था कि परीक्षा तो वह पास कर ही लेंगे, क्योंकि एकाउंटेंसी तो उनके डीएनए में है। पिता ने विवेक से एकाउंटेसी से जुड़े कुछ साधारण सवाल किए और जब विवेक के जवाब सुने तो बोले- तुम कभी पास नहीं होगे। विवेक ने भी चुनौती दी- पहले ही प्रयास में पास करके दिखाऊंगा। लेकिन साल में दो बार होने वाली इस परीक्षा में वह चार बार फेल हुए। आखिरकार विवेक ने पिता के सामने समर्पण कर दिया और पांचवें में प्रयास में शानदार तरीके से परीक्षा पास की। इसके लिए पिता ने उन्हें सिर्फ तीन घंटे पढ़ाया था।
फंडा यह है कि एक खालिस शिक्षक ही जानता है कि किसे क्या पढ़ाना है और यह भी कि कैसे पढ़ाना है, क्योंकि वही असली किंगमेकर है।